घुघुतिया त्यार में बच्चों ने गुनगुनाया ‘काले कौवा काले घुघुति माला खाले’, हो न सके कौवों के दीदार

संजय पाठक, हल्द्वानी। गांवों से निकलकर हल्द्वानी और दूसरे शहरों में बसे लोग भले ही अपनी गांव- माटी से दूर हो गए हों लेकिन घुघुतिया त्यार मनाने की परंपरा आज भी वही है। उत्तरायणी का त्योहार कुमाऊं भर में धूमधाम से मनाया गया। सोमवार को पवित्र नदियों में स्नान, दान के बाद शाम को घर घर में घुघुते, खजूर और विभिन्न पकवान बनाए गए। हल्द्वानी के रानीबाग तीर्थ में मां जिया रानी के पूजन और पवित्र गार्गी नदी में स्नान के लिए कत्यूरी वंशज और श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकजुट हुए। इस दौरान बच्चों के जनेऊ संस्कार और कर्णभेदन भी हुए।

मंगलवार सुबह बच्चों ने घुघुती माला पहनकर पर्व की खुशियों को दोगुना कर दिया। इस दौरान बच्चे प्लेट में पकवान और घुघुते लेकर छत पर भी गए और ‘ काले कौवा काले घुघुति माला खाले’ गीत भी गुनगुनाया लेकिन दूर दूर तक कौवे नजर नहीं आए। हालाकि दूसरी चिड़ियाओं ने पकवानों को अपनी चोंच में दबाकर बच्चों के दिए प्रसाद का मान रखा। जहां आसमान में चिड़िया भी नजर नहीं आईं, वहां बच्चों ने गाय और कुत्ते को पकवान खिलाए।

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इस दौरान माता पिता और बुजुर्ग कुछ साल पहले तक आसमान में उड़ते कौओं के झुंड की याद को बच्चों से साझा करते नजर आए। वहीं, इस मौके पर जागरूक परिजनों ने बच्चों को बिगड़ते पर्यावरण के कारण पशु पक्षियों को होने वाले नुकसान से भी अवगत कराया।बताते चलें कि बागेश्वर, चम्पावत व पिथौरागढ़ जिले की सीमा पर स्थित घाट से होकर बहने वाली सरयू नदी के पार (पिथौरागढ़ व बागेश्वर निवासी) वाले मासांत को घुघुतिया त्यार मनाते हैं।

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जबकि नैनीताल, अल्मोड़ा और उधमसिंह नगर में इसे संक्रांति के दिन मनाया जाता है। उत्तराखंड में मकर संक्रांति पर्व को घुघुतिया और उत्तरैणी के नाम से भी जाना जाता है।जबकि देश में मकर संक्रांति अलग-अलग नाम और अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। जैसे तमिलनाडु में पोंगल, उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी, गुजरात में उत्तरायण, पश्चिम बंगाल में गंगासागर मेले के तौर पर मनाया जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार, मकर संक्रांति पर सूर्य देव स्वयं अपने पुत्र शनि से मिलने जाते हैं। क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं। अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है । धार्मिक मान्यतानुसार, उत्तरायणी पर्व मनाने का विशेष कारण यह भी माना जाता है कि दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान के साथ ही खिचड़ी,तिल, गुड़, तेल, घी, उड़द, वस्त्र, दक्षिणा आदि के दान का भी विशेष महत्व है।

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