हल्द्वानी : सर्दी और गर्मी के बीच का खूबसूरत मौसम, फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल और बच्चों के खिले हुए चेहरे… ‘फूलदेई’ के पर्व की विशेषता है। नए साल का, नई ऋतुओं का, नए फूलों के आने का संदेश लाने वाला ये पर्वप्रकृति को आभार प्रकट करने वाला लोकपर्व है ‘फूलदेई’…चैत्र माह की संक्रांति को, जब उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का पर्व मनाया जाता है
यह लोकपर्व मुख्य रूप से किशोरियों और छोटे बच्चों से जुड़ा है। वक्त के साथ तरीके बदले, लेकिन हम सभी को प्रयास करना चाहिए कि अपनी संस्कृति को जिंदा रखें व बढ़ावा दें व लोगों को जागरूक करें।फूलदेई के दिन बच्चे सुबह-सुबह उठकर फ्यूंली, बुरांश, बासिंग और कचनार जैसे जंगली फूल इकट्ठा करते हैं।
इन फूलों को थाली या टोकरी में सजाया जाता है। टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल, पैसे और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं फूल और चावलों को गांव के घर की देहरी, यानी मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की कामना करती हैं। इस दौरान एक गाना भी गाया जाता है- फूलदेई, छम्मा देई….दैणी द्वार, भरे भकार…. यो देई पूजूं बारम्बार