संजय पाठक, हल्द्वानी : अपनी पहचान, संस्कृति, रोजगार और प्राकृतिक संसाधनों पर मंडराते खतरे की आहट को अब उत्तराखंड के मूल निवासी अच्छे से समझ चुके हैं। यही वजह है कि अब उत्तराखंड के कोने कोने से मूल निवास 1950 और मजबूत भू कानून को लेकर आवाज जोरशोर से उठने लगी है। देहरादून में हुई ऐतिहासिक महारैली के बाद आज हल्द्वानी में मातृशक्ति, युवा और बुजुर्गों ने हल्लाबोल किया। इस दौरान पहाड़ के जाने माने हास्य कलाकार जीवन दानू, भानु पहाड़ी के साथ साथ लोक कलाकार भावना चुफाल, हिमानी कोरंगा भी रैली में जोश भरते नजर आए। बुद्ध पार्क से पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच तक मूल निवास और भू कानून लागू करने के नारों के साथ जोरदार रैली निकली। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के विवादित बयान को लेकर लोगों में गुस्सा देखने को मिला। बताते चलें कि महेंद्र भट्ट ने एक न्यूज पोर्टल को दिए इंटरव्यू में भू कानून और मूल निवास की रैली में शामिल होने वाले लोगों को वामपंथी और पहाड़ का विकास रोकने वाला कहा था।भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के इस बयान का गुस्सा रैली में शामिल लोगों में साफ देखने को मिला।भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के एक बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए आंदोनकारियों ने उन्हें खुली बहस की चुनौती भी दी। समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि महेंद्र भट्ट ने मूल निवास को लेकर चल रहे आंदोलन से जुड़े लोगों को विकास विरोधी और माओवादी कह कर एक बार फिर अपनी मूर्खता का परिचय दिया है। डिमरी ने कहा कि दिल्ली में बैठे हाईकमान की कठपुतली, महेंद्र भट्ट में यदि साहस हो, तो वे मूल निवास और भू-कानून के मुद्दे पर आंदोलन कर रहे लोगों के साथ बहस करके दिखाएं । इस दौरान बुद्ध पार्क के आसपास और उत्थान मंच तक बड़ी संख्या में पुलिस बल मौजूद रहा।
‘मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति’ के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि, 40 से ज्यादा आंदोलनकारियों की शहादत से हासिल हुआ हमारा उत्तराखंड राज्य आज 23 साल बाद भी अपनी पहचान के संकट से जूझ रहा है। उन्होंने कहा कि 23 साल बाद भी यहां के मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाया है और अब तो हालात इतने खतरनाक हो चुके हैं कि मूल निवासी अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं। डिमरी ने कहा कि मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू करने के साथ ही प्रदेश में मजबूत भू-कानून लागू किया जाना बेहद जरूरी है। समिति के सह संयोजक लूशुन टोडरिया ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रहें, इसके लिए मूल निवास 1950 और मजबूत भू-कानून लाना जरूरी है।इस मौके पर जन आंदोलन को धार देने और आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाने वाली “मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति” ने आने वाले समय में एकजुट होकर पहाड़ी अस्मिता और अधिकारों की इस लड़ाई में उत्तराखंड के लोगों से बढ़चढकर योगदान देने की अपील की। वंदे मातरम ग्रुप के संस्थापक और संघर्ष समिति के कोर मेंबर शैलेंद्र सिंह दानू, पहाड़ी आर्मी के संस्थापक हरीश रावत, कांग्रेस नेता सौरभ भट्ट ने कहा कि अगर सरकार जनभावना के अनुरूप मूल निवास और मजबूत भू-कानून लागू नहीं करेगी तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। वरिष्ठ पत्रकार और राज्य आंदोलनकारी चारु तिवारी, उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार, समिति के कोर मेम्बर प्रांजल नौडियाल ने कहा कि इस आंदोलन को प्रदेशभर से लोगों का मजबूत समर्थन मिल रहा है। उन्होंने कहा कि 24 दिसंबर को देहरादून में हुई महारैली के बाद अब हल्द्वानी में जिस तरह से जनसैलाब उमड़ा है, उससे स्पष्ट है कि राज्य के लोग अपने अधिकारों, सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व को बचाने के लिए निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार हैं।
समन्वय समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने बताया कि प्रदेश में मूल निवास की सीमा 1950 और मजबूत भू-कानून लागू करने को लेकर चल रहे आंदोलन को प्रदेशभर में ले जाया जाएगा। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द ठोस कार्यक्रम बनाकर पूरे प्रदेश में जन जागरूकता अभियान शुरू किया जाएगा। डिमरी ने बताया कि चरणबद्ध तरीके से समिति विभिन्न कार्यक्रम करेगी, जिसके तहत गांव-गांव जाने से लेकर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में जाकर युवाओं से संवाद किया जाएगा। इस बाबत जल्द ही कार्यक्रम का ऐलान किया जाएगा। सभा को बेरोजगार संघ के कुमाऊं संयोजक भूपेंद्र कोरंगा, आरंभ ग्रुप के राहुल पंत, विशाल भोजक, पीयूष जोशी, दीपक जोशी, यूकेडी नेता भुवन जोशी, सुशील उनियाल, उत्तम बिष्ट, मोहन चंद्र कांडपाल, अशोक सिंह बोहरा, प्रमोद काला, अनिल डोभाल, वन यूके के अजय बिष्ट आदि ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के कोर मेंबर शैलेन्द्र सिंह दानू और प्रांजल नौडियाल ने संयुक्त रूप से किया। महारैली को प्रदेश के तमाम संगठनों ने समर्थन दिया जिनमें उत्तराखण्ड क्रांति दल,वन्दे मातरम ग्रुप,पहाड़ी स्वाभिमान, सेना, जैक्लिप्स,वन यूके,पहाड़ी आर्मी,स्वराज हिन्द फौज,उत्तराखण्ड युवा एकता मंच,आरम्भ एक पहल,उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी मंच,उत्तराखंड स्टूडेंट्स फेडरेशन आदि प्रमुख थे।****ये हैं प्रमुख मांगें *****मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए। *प्रदेश में ठोस भू-कानून लागू हो।*शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। जमीन उसी को दी जाय, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो। *ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।* गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।*पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।*राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।*प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।*ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।